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गोविन्द बल्लभ पंत जी का जीवन परिचय - Biography of Govind Ballabh Pant ji - भारतीय संविधान में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने और जमींदारी प्रथा को खत्म कराने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले गोविन्द बल्लभ पंत जी उत्‍तर प्रदेेश के प्रथम मुख्‍यमंत्री थे तो आइये जानते हैंं गोविन्द बल्लभ पंत का जीवन परिचय - Biography of Govind Ballabh Pant

गोविन्द बल्लभ पंत जी का जीवन परिचय - Biography of Govind Ballabh Pant ji

  • इनका जन्‍म 10 सितम्‍बर 1887 को उत्‍तराखण्‍ड के अल्‍मोडा के खूंट गॉव मेें हुआ था
  • इनके पिता का नाम मनोरथ पंत और माता का नाम गोविंंदी पंत था
  • इनके पिता की मृत्‍यु इनके वचपन में ही गयी थी
  • इनकी परवरिश इनके दादाजी बद्रीदत्‍त जोशी जी की देखरेख में हुई
  • पंत जी ने 10 वर्ष की आयु तक शिक्षा अपने घर पर ही ग्रहण की इसके बाद इन्‍होंने वर्ष 1897 में रामजे कॉलेज में दखिला लिया था
  • इनका विवाह 12 वर्ष की अल्‍प आयु में वर्ष 1899 में गंगा देवी जी के साथ हो गया था
  • पंत जी वर्ष 1905 में अल्‍मोडा छोडकर इलाहावाद आ गये
  • इलाहाबाद आकर पंत जी ने म्‍योर सेन्‍ट्रल कॉलेज से गणित, साहित्‍य और राजनीति विषयों से बीए की परीक्षा पास की
  • पंत जी पढाई के साथ साथ कांग्रेस में स्‍वंय सेवक का कार्य भी करने लगे थे
  • इन्‍होंने वर्ष 1907 में वीए और 1909 में कानून की डिग्री अच्‍छे अंकों से प्राप्‍त की
  • विश्वविद्यालय में कानून की डिग्री में सर्वप्रथम आने पर इन्‍हें 'लम्सडैन' स्वर्ण पदक प्रदान किया गया था
  • पंत जी इसके बाद वर्ष 1910 में अल्‍मोडा वापस आ गये और वकालत आरम्भ की
  • इसके बाद इन्‍होंने रानीखेत में वकालत की, फिर पंत जी वहाँ से काशीपुर आ गये
  • पंत जी ने काशीपुर जाकर प्रेम सभा नाम की एक संस्‍था की स्‍थापना की थी
  • वर्ष 1909 में इनकी पत्‍नी गंगादेवी जी का निधन हो गया और इन्‍होंने वर्ष 1912 में दूसरा विवाह कर लिया
  • पंत जी आपके प्रयत्न से कुमाऊँ परिषद की स्थापना हुयी और इसी परिषद के प्रयत्न से 1921 में कुमाऊँ म प्रचलित कुली बेगार की अपमानजनक प्रथा का अंत हुआ
  • वर्ष 1920 में जब गांधीजी रोलेट एक्ट के विरोध में असहयोग आन्दोलन आरम्भ किया तो पन्त जी ने अपनी चलती वकालत छोड़ दी
  • इसके बाद ये वर्ष 1921 में गांधी जी के कहने पर खुली राजनीति में उतर आये
  • इसके बाद पंत जी को वर्ष 1928 में साइमन कमीशन के बहिष्‍कार और 1930 में नमक सत्‍याग्रह में भाग लेने के लिए 1930 में देहरादून जेल भी जाना पडा था
  • पंत जी 17 जुलाई, 1937 लेकर 2 नवम्बर 1939 तक वे ब्रिटिश भारत में संयुक्त प्रान्त के प्रथम मुख्यमंत्री बने जिसमें नारायण दत्त तिवारी संसदीय सचिव नियुक्त किये गये थे
  • इसके बाद ये दोवारा 1 अप्रैल 1946 से 15 अगस्‍त 1947 तक संयुक्त प्रान्त के मुख्यमंत्री बने
  • संविधान निर्माण के बाद इस संयुक्‍त प्रान्‍त का नाम उत्‍तरप्रदेश रखा गया
  • स्‍वतंत्रता केे बाद पंत जी को इस राज्‍य के मुख्‍य मंत्री का पद फिर से दिया गया और ये 26 जनवरी 1950 से लेकर 27 दिसम्‍बर 1954 तक मुुुुख्‍यमंंत्री रहे थे
  • पंत जी सरदार बल्‍लभ भाई पटेल की मृत्‍यु के बाद 10 जनवरी 1955 को भारत का गृह मंत्री बनाया गया था
  • पंत जी सन 1921, 1930, 1932 और 1934 के स्वतंत्रता संग्रामों में लगभग 7 वर्ष जेलों में रहे थे
  • भारत का सर्वोच्‍च सम्‍मान भारत रत्न उनके ही काल में आरम्भ किया गया
  • सन् 1957 में गणतन्त्र दिवस पर महान् देशभक्त, कुशल प्रशासक, सफल वक्ता, तर्क का धनी एवं उदारमना पन्त जी को भारत की सर्वोच्च सम्‍मान भारत रत्न से नवाजा गया
  • केन्‍द्रीय गृह मंत्री के पद रहते हुऐ हृदयाघात के कारण 7 मई 1961 को इनकी मृत्‍यु हो गयी थी

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